तुर्की और सीरिया में छह फरवरी को तड़के जो भयानक भूकंप आया वह अपने साथ कई सबक भी लेकर आया.
ऐसे में यह जान लेना चाहिए कि धरती हमें क्या संदेश दे रही है. तुर्की और उसके आसपास एनाटोलियन प्लेट है. इस पर दो बड़ी प्लेट अरेबियन प्लेट और यूरेशियन प्लेट लगातार दबाव बनाए हुए हैं. इसी दबाव के नतीजे में छह फरवरी को तड़के 7.8 तीव्रता का भूकंप आया.
ईस्ट एनाटोलियन फॉल्ट के पास वह इलाका है जहां भूकंप आया. बाद में झटके भी आए. एक ऑफ्टर शॉक 7.5 की तीव्रता का भी था. 7.8 की तीव्रता का भूकंप कितना भयंकर था इसका अंदाजा इस बात से लगाएं कि उसकी वजह से एनाटोलियन प्लेट तीन मीटर पश्चिम की ओर खिसक गई. इतनी ज्यादा ऊर्जा उस भूकंप में थी कि उसने एक बड़े भू भाग को तीन मीटर खिसका दिया. इसकी वजह से तुर्की और सीरिया में भारी तबाही हुई.
यदि दुनिया पर नजर डालें तो धरती में कोई एक सतह नहीं है, उसमें कई फॉल्ट हैं. सतह कई जगह टूटी हुई है जो अलग-अलग टैक्टोनिक प्लेट की शक्ल में दिखती है. इनमें से कई टेक्टोनिक प्लेट एक-दूसरे के करीब आ रही हैं. कुछ दूर भी जा रही हैं. जो करीब आ रही हैं वे ज्यादा चिंता में डाल रही हैं.
यदि इंडियन प्लेट को देखें तो यह ऊपर की ओर यूरेशियन प्लेट से लगातार टकरा रही है. इसका नतीजा यह है कि हिमालय में भूकंप आने का खतरा बना रहता है. अतीत में हिमालय के निर्माण का कारण देखें तो लौरेशिया और गोंडवाना जियोलॉजिकल पास्ट में एक दूसरे से अलग हुए. उसके बाद टैक्टोनिक प्लेट एक-दूसरे से दूर होनी शुरू हुईं. फिर एक-दूसरे के कुछ करीब भी आनी शुरू हुईं.
इसी प्रक्रिया का नतीजा इंडियन प्लेट है जो यूरेशियन प्लेट से टकराई और इसी टकराहट का नतीजा हिमालय का निर्माण है. दो प्लेटों ने एक-दूसरे पर इतना दबाव बनाया कि बीच का हिस्सा ऊपर चढ़ता गया और हिमालय बन गया. यह प्रोसेस अब भी चल रहा है. जमीन के नीचे यह दोनों प्लेटें आपस में टकरा रही हैं.
दो प्लेटों में टकराहट के कारण ही हिमालय की आर्क भूकंप के लिहाज से बहुत ज्यादा संवेदनशील है. इस क्षेत्र में कई बड़े भूकंप आ चुके हैं.