नाक से लिए सैंपल की जांच से कोरोना वायरस की प्रारंभिक चेतावनी मिल सकती है। अमेरिकी शोधार्थियों ने एक अध्ययन में दावा किया है कि नाक से लिए सैंपल यानी नेजल स्वैब के परीक्षण से छिपे हुए वायरस का पता चल सकता है।
मेडिकल जर्नल द लैंसेट माइक्रोब में प्रकाशित अध्ययन में शोधार्थियों ने कहा है कि वायरस की पहचान मानक परीक्षणों में नहीं की गई है लेकिन नेजल स्वैब में इसे पकड़ा जा सकता है। अमेरिका की येल यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर एलेन फॉक्समैन ने कहा, एक खतरनाक नए वायरस का पता लगाना भूसे के ढेर में सुई खोजने जैसा है। हमें घास के ढेर के आकार को काफी कम करने का एक तरीका मिला है।
नए वायरस के अधिकांश परीक्षण आते हैं नकारात्मक
उन्होंने बताया कि आमतौर पर संदिग्ध श्वसन संक्रमण वाले मरीजों से नेजल स्वैब के नमूने लिए जाते हैं। इसके बाद उन वायरस के विशिष्ट संकेतों को लेकर जांच की जाती है, जिनके बारे में जानकारी उपलब्ध है। अब अगर कोई नया वायरस है तो अधिकांश परीक्षण नकारात्मक आते हैं। कोरोना के मामले में ऐसा ही देखने को मिला था क्योंकि यह नया वायरस था और अधिकांश लोगों में जांच निगेटिव होने की बाद भी वे संक्रमित मिल रहे थे।
पुराने नमूनों की जांच में मिला संक्रमण
शोधकर्ताओं ने जब अध्ययन के दौरान रोगियों का परीक्षण किया तो देखा कि उनके स्वैब में एंटी-वायरल डिफेंस के सक्रिय होने का संकेत था, जो वायरस के शरीर में मौजूदगी बताता है। शोधकर्ताओं ने मार्च 2020 के पहले दो हफ्तों के दौरान कोरोना के छूटे हुए मामलों की खोज के लिए पुराने नमूनों की जब फिर से जांच की तो काफी लोगों में संक्रमण की पुष्टि हुई।
नेजल स्वैब की जांच करने पर मिला संक्रमण
येल-न्यू हेवन अस्पताल में भर्ती अधिकांश मरीजों में एंटी-वायरल रक्षा प्रणाली की गतिविधि का कोई निशान तक नहीं था, लेकिन कुछ में यह गतिविधि मिली तो शोधार्थियों ने जब उनके नैजल स्वैब की जांच की तो उसमें संक्रमण के चार मामले मिले। यही मामले बाद में वायरस प्रसार के प्रमुख माध्यम भी थे।