वक्फ कानून पर आज होगी ‘सुप्रीम’ सुनवाई, आखिर क्या है दोनों पक्षों की दलील

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वक्फ कानून को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी. संशोधित वक्फ कानून का मकसद मुस्लिम वक्फ की संपत्तियों के प्रबंधन को पारदर्शी बनाना है.

इस कानून के बचाव में छह बीजेपी शासित राज्यों ने भी इसमें शामिल होने की मांग की है. लोकसभा और राज्यसभा में लंबी बहस के बाद अप्रैल की शुरुआत में संसद से वक्फ संशोधन विधेयक पारित (Waqf Act) हो गया था. जिसके बाद इसे राष्ट्रपति की मंजूरी भी मिल गई. अब देश के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच दोपहर 2 बजे इस पर सुनवाई करेगी.

सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले साफ किया था कि वह विधायिका के अधिकार क्षेत्र में दखल नहीं देगा. लेकिन संविधान से जुड़े मुद्दों पर अंतिम मध्यस्थ के रूप में, वह याचिकाकर्ताओं की बात सुनने के लिए सहमत है. जिनमें इस बात पर जोर दिया गया है कि संशोधित कानून समानता के अधिकार और धार्मिक प्रथाओं को अपनाने के अधिकार समेत कई मौलिक अधिकारों का हनन करता है.

वक्फ कानून को चुनौती देने वालों में कांग्रेस, JDU, आम आदमी पार्टी, DMK और सीपीआई के नेताओं और धार्मिक संगठन और जमीयत उलेमा हिंद और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड जैसे गैर सरकारी संगठन शामिल हैं.
बीजेपी शासित मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, असम, महाराष्ट्र और उत्तराखंड ने वक्फ कानून के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर कर सुनवाई की मांग की है.

सुप्रीम कोर्ट में दायर कुछ याचिकाओं में वक्फ कानून को असंवैधानिक बताते हुए इसे रद्द करने की मांग की गई है. कुछ याचिकाओं में इसके क्रियान्वयन पर रोक लगाने की मांग की करते हुए इसे मनमाना और मुसलमानों के खिलाफ भेदभावपूर्ण भी बताया गया है.

AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने अपनी याचिका में कहा है कि संशोधन अधिनियम उन विभिन्न सुरक्षाओं को समाप्त कर देता है, जो पहले वक्फ को दी जाती थीं. अन्य धर्मों के धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्तों के लिए ऐसी सुरक्षा को बनाए रखते हुए वक्फ संपत्तियों को दी जाने वाली सुरक्षा को कम करना मुसलमानों के खिलाफ शत्रुतापूर्ण भेदभाव है और संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन है.

आप विधायक अमानतुल्ला खान ने अपनी याचिका में तर्क दिया है कि वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करना अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है. न ही इसका धार्मिक संपत्ति प्रशासन के उद्देश्य से कोई तर्कसंगत संबंध है.

सरकार का कहना है कि वक्फ विधेयक संपत्ति और उसके प्रबंधन के बारे में है, न कि धर्म के बारे में. सरकार ने कहा कि वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में बड़े पैमाने पर अनियमितताएं हैं और उसकी इनकम से गरीब मुसलमानों या महिलाओं और बच्चों को कोई मदद नहीं मिलती है, संशोधित कानून इसे ठीक कर देगा.

सरकार ने कहा कि वक्फ कानून को लोगों के एक बड़े वर्ग की सलाह-मशविरा के बाद ही तैयार किया गया है. इसको गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों का भी समर्थन मिला है. सरकार का दावा है कि यह एक्ट संयुक्त संसदीय समिति की जांच से गुजरा और सदस्यों द्वारा सुझाए गए कई संशोधनों को भी इसमें शामिल किया गया है.

वक्फ विधेयक को लेकर देश के कई हिस्सों में लगातार विरोध प्रदर्शन हुए. संसद के दोनों सदनों से इसके पास होने के बाद और उससे पहले भी विरोध प्रदर्शन हुए. बंगाल इन दिनों इस कानून को लेकर हिंसा की आग में जल रहा है. मुर्शिदाबाद में विरोध प्रदर्शनों के दौरान हिंसा भड़क गई है. बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने कहा है कि उनकी सरकार संशोधित वक्फ कानून को लागू नहीं करेगी.

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