विदेश मंत्री एस जयशंकर ने गाजा में मौजूदा स्थिति को लेकर चिंता के बीच शनिवार को कहा कि भारत कई दशकों से कहता रहा है कि फलस्तीन मुद्दे का द्विराष्ट्र समाधान होना चाहिए
और अब बड़ी संख्या में देश न केवल इसका समर्थन कर रहे हैं, बल्कि इसे पहले की तुलना में ‘‘अधिक आवश्यक” मान रहे हैं. जयशंकर ने म्यूनिख में एक सुरक्षा सम्मेलन में अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन और जर्मनी की विदेश मंत्री एनालेना बेयरबॉक की मौजूदगी में एक सत्र में यह टिप्पणी की.
विदेश मंत्री ने सात अक्टूबर को हमास द्वारा इजराइली शहरों पर किए गए हमलों को ‘‘आतंकवाद” बताया, लेकिन साथ ही तेल अवीव की प्रतिक्रिया का जिक्र करते हुए कहा कि मानवीय कानूनों का पालन करना इजराइल का अंतरराष्ट्रीय दायित्व है. जयशंकर ने कहा कि यह महत्वपूर्ण है कि इजराइल को नागरिकों के हताहत होने के प्रति बहुत सचेत रहना चाहिए.
संघर्ष को लेकर भारत की स्थिति स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि इसके विभिन्न पहलू हैं और इन्हें मोटे तौर पर चार बिंदुओं में वर्गीकृत किया गया है.
उन्होंने कहा, ‘‘पहला बिंदु – हमें स्पष्ट होना चाहिए कि सात अक्टूबर को जो हुआ वह आतंकवाद था; इसमें कोई दो राय नहीं, यह आतंकवाद था.”
जयशंकर ने कहा, ‘‘दूसरा बिंदु, जैसा कि इजराइल ने जवाबी कार्रवाई की, यह महत्वपूर्ण है कि इजराइल को नागरिकों के हताहत होने के प्रति बहुत सावधान रहना चाहिए था. मानवीय कानून का पालन करना उसका एक अंतरराष्ट्रीय दायित्व है.”
विदेश मंत्री ने तीसरे बिंदु का जिक्र करते हुए कहा कि आज बंधकों की वापसी जरूरी है. उन्होंने कहा कि चौथा बिंदु राहत पहुंचाने के लिए एक मानवीय गलियारे की जरूरत है.
विदेश मंत्री ने फलस्तीन मुद्दे पर भारत की लंबे समय से कायम स्थिति पर भी प्रकाश डाला. उन्होंने कहा, ‘‘निश्चित रूप से भारत लंबे समय से द्विराष्ट्र समाधान में विश्वास करता रहा है. हमने कई दशकों तक उस स्थिति को बनाए रखा है और मुझे लगता है, आज दुनिया के कई और देश महसूस करते हैं कि द्विराष्ट्र समाधान न केवल आवश्यक है, बल्कि यह पहले की तुलना में अधिक जरूरी है.”
हमास द्वारा सात अक्टूबर को इजराइली शहरों पर किए गए जबरदस्त हमले के जवाब में इजराइल गाजा में अपना सैन्य आक्रमण जारी रखे हुए है.