Air Pollution: वायु प्रदूषण नियंत्रण के लिए कदम उठाने में नोएडा फिसड्डी, दिल्ली और फरीदाबाद भी पिछड़े

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भारत के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक नोएडा इस पर नियंत्रण के लिए आवंटित धनराशि का उपयोग करने में फिसड्डी साबित हुआ है।

इसने 2019 से राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) के तहत प्रदूषण नियंत्रण के लिए प्राप्त 21.95 करोड़ रुपये में से केवल छह प्रतिशत का ही उपयोग किया है।

पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों से पता चला है कि एनसीएपी के अंतर्गत शामिल 131 शहरों में से 19 ने तीन मई तक आवंटित धनराशि का 50 प्रतिशत से भी कम इस्तेमाल किया है। इसमें 37.33 प्रतिशत के साथ राष्ट्रीय राजधानी और 38.89 प्रतिशत के साथ फरीदाबाद भी शामिल हैं।

प्रदूषण में लाना है 20-30 प्रतिशत की कमी
आंकड़ों के मुताबिक देश के चार शहरों ने 25 प्रतिशत से भी कम उपयोग किया है। एनसीएपी 2019 में शुरू किया गया और यह स्वच्छ वायु लक्ष्य निर्धारित करने का भारत का पहला राष्ट्रीय प्रयास है। इसका लक्ष्य 2017 को आधार वर्ष मानकर 2024 तक पीएम10 (हवा में 10 माइक्रोमीटर या उससे कम आकार के कण) प्रदूषण में 20-30 प्रतिशत की कमी लाना है।

बाद में लक्ष्य को संशोधित किया गया और 2019-20 को आधार वर्ष मानकर 2026 तक 40 प्रतिशत की कमी लाने का लक्ष्य रखा गया है। कुल 46 शहरों और शहरी समूहों ने कार्यक्रम के अंतर्गत प्राप्त धनराशि का 75 प्रतिशत से भी कम खर्च किया, जो या तो उसे सीधे पर्यावरण मंत्रालय से या 15वें वित्त आयोग के माध्यम से प्राप्त हुई।

धनराशि का उपयोग करने में पिछड़े शहर

कांग्रेस ने कहा- वायु प्रदूषण संकट नीतिगत विफलता का परिणाम
वायु प्रदूषण से निपटने के लिए मोदी सरकार पर खराब नीति बनाने का आरोप लगाते हुए कांग्रेस ने रविवार को कहा कि आगामी बजट में स्थानीय निकायों, राज्य सरकारों और केंद्र को इस “गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट” से निपटने के लिए संसाधन उपलब्ध कराने का मार्ग प्रशस्त किया जाना चाहिए।

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि भारत का वायु प्रदूषण संकट नीतिगत विफलता का परिणाम है। जयराम ने इस महीने की शुरुआत में कहा था कि एक अध्ययन से पता चला है कि भारत में होने वाली सभी मौतों में से 7.2 प्रतिशत मौतें वायु प्रदूषण के कारण होती हैं। सिर्फ 10 शहरों में हर साल लगभग 34 हजार मौतें वायु प्रदूषण से होती हैं।

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