बजट सत्र की शुरुआत आज से, कल पेश होगा मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का अंतरिम बजट

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संसद का बजट सत्र (Budget Session 2024) आज से शुरू हो रहा है. कल यानी कि 1 फरवरी को बजट पेश किया जाएगा. खास बात यह है कि मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का यह आखिरी बजट है.

वहीं देश की वित्त मंत्री नर्मला सीतारमण अंतरिम बजट पेश करेंगी. वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण अप्रैल-मई में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले एक फरवरी को अंतरिम बजट पेश करेंगी. नई सरकार कार्यभार संभालने के बाद पूर्ण बजट पेश करेगी.

बता दें कि अंतरिम बजट सिर्फ नई सरकार के आने तक सरकारी खर्चों को पूरा करने के लिए पेश किया जाएगा. लोकसभा चुनावों के बाद चुनी गई नई सरकार की तरफ से जुलाई में वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए पूर्ण बजट पेश किया जाएगा. लोकसभा चुनाव करीब हैं, ऐसे में बजट से लोगों को काफी उम्मीदें हैं, वहीं चुनाव को देखते हुए बजट में आम जनता के लिए राहत की उम्मीद की जा रही है. हालांकि बजट सत्र हंगामेदार रहने के आसार हैं. कई मुद्दों को लेकर विपक्ष सरकार को घेर सकती है.

ये है बजट सत्र का मुख्य एजेंडा

संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने विभिन्न दलों के नेताओं की बैठक में कहा कि सीतारमण जम्मू-कश्मीर के लिए भी बजट पेश करेंगी, जहां राष्ट्रपति शासन है. जोशी ने बताया कि 17वीं लोकसभा के 9 फरवरी को समाप्त होने वाले इस संक्षिप्त सत्र का मुख्य एजेंडा राष्ट्रपति का अभिभाषण, अंतरिम बजट की प्रस्तुति और राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा तथा इसका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा जवाब दिया जाना है.

सर्वदलीय बैठक में उठे ये अहम मुद्दे
बता दें कि बजट सत्र से पहले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अगुवाई में सर्वदलीय बैठक हुई. इस दौरान विपक्षी नेताओं ने कई मुद्दे उठाए. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता के. सुरेश ने कहा कि पार्टी सत्र के दौरान बेरोजगारी, महंगाई, कृषि संकट और जातीय हिंसा प्रभावित मणिपुर की स्थिति का मुद्दा उठाएगी. वहीं तृणमूल कांग्रेस नेता सुदीप बंदोपाध्याय ने कहा कि वित्त मंत्री को अंतरिम बजट में विभिन्न केंद्रीय योजनाओं के तहत पश्चिम बंगाल के बकाये को भी शामिल करना चाहिए.

उन्होंने कहा, “यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक मुख्यमंत्री को राज्य को केंद्रीय बकाया के समय पर आवंटन की मांग के लिए धरने पर बैठना पड़ा.” समाजवादी पार्टी के नेता एसटी हसन ने पूजा स्थल अधिनियम को मजबूत करने के लिए कदम उठाने की मांग की. यह अधिनियम धार्मिक स्थलों के 15 अगस्त 1947 की यथास्थिति के अनुरूप उनके धार्मिक स्वरूप को बनाये रखने और उनके रूपांतरण को प्रतिबंधित करता है.

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