उत्तराखंड से नेपाल तक को हिलाने वाला भूकंप, मिले ऐतिहासिक प्रमाण; भविष्य में भी आने वाली है तबाही!

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वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान ने अपने ताजा अध्ययन में उत्तराखंड से लेकर नेपाल तक को हिलाने वाले विशाल ऐतिहासिक भूकंप का पता लगाया है।

इसके प्रमाण विज्ञानियों ने उत्तराखंड के कोटद्वार क्षेत्र के पास लालढांग में खोजे हैं। इनकी क्षमता आठ मैग्नीट्यूड पाई गई है। हालांकि, अभी यह पता लगाया जाना बाकी है कि भूकंप के केंद्र उत्तराखंड व नेपाल के बीच किस स्थान पर रहे होंगे।

वाडिया संस्थान में आयोजित जियो-रिसर्च स्कालर्स मीट के दूसरे दिन जागरण से विशेष बातचीत में वरिष्ठ विज्ञानी डा. आरजे पेरुमल के मुताबिक, ऐतिहासिक भूकंप का पता लगाने के लिए पहले लालढांग क्षेत्र में सेटेलाइट मैपिंग की गई। इसके बाद फाल्ट वाले क्षेत्र में 10 मीटर गहराई, करीब 20 मीटर लंबाई व 06 मीटर चौड़ाई में गड्ढा खोदा गया। ऐतिहासिक भूकंप के दौरान भूगर्भ में पड़ी दरार का विश्लेषण किया गया। साथ ही इसकी अवधि का भी आकलन किया गया।

आए थे आठ रिक्टर स्केल के दो भूकंप
डा. आरजे पेरुमल के मुताबिक, लालढांग क्षेत्र में किया गया अध्ययन बताता है कि यहां वर्ष 1344 व 1505 के करीब आठ रिक्टर स्केल के दो भूकंप आए हैं। यह भूकंप इतने शक्तिशाली थे कि लालढांग से लेकर रामनगर, टनकपुर व पश्चिमी नेपाल तक धरती पर दरार पड़ गई। इसका दायरा करीब 200 किलोमीटर का पाया गया है। भूकंप का सीधा असर उत्तराखंड से नेपाल तक रहा, लेकिन इनके केंद्र कहां पर थे, इस पर से पर्दा उठना अभी बाकी है।

भूकंप का केंद्र स्पष्ट नहीं
केंद्र का पता लगाने के लिए भूकंप के सीधे प्रभाव वाले क्षेत्रों में इसी तरह गड्ढे बनाकर प्रमाण जुटाए जाएंगे। भूकंप के केंद्र स्पष्ट हो जाने के बाद संबंधित क्षेत्र में भूगर्भ में तनाव की स्थिति का आकलन करने में भी मदद मिलेगी। इससे आकलन किया जा सकेगा कि भविष्य में इस क्षेत्र में विशाल भूकंप की कितनी आशंका है।

भूकंप के कारण 13 मीटर ऊपर उठी जमीन
वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वरिष्ठ भू-विज्ञानी डा. आरजे पेरुमल के मुताबिक, वर्ष 1344 व 1505 में आए आठ मैग्नीट्यूड के भूकंप इतने शक्तिशाली थे कि इन्होंने जमीन को 13 मीटर ऊपर उठा दिया। जमीन का यह उठा हुआ भाग इसके फाल्ट वाले पूरे क्षेत्र में देखा जा सकता है।

भविष्य में भी विशाल भूकंप की बनी है आशंका
संबंधित क्षेत्र में विशाल भूकंप का इतिहास होने का मतलब यह भी है कि इस क्षेत्र में भविष्य में भी इतनी ही क्षमता के भूकंप आ सकते हैं। वरिष्ठ विज्ञानी डा. आरजे पेरुमल का कहना है कि बड़े भूकंप के इतिहास वाले क्षेत्रों में निर्माण कार्यों और बड़ी परियोजनाओं को नवीनतम और भूकंपरोधी तकनीक पर किया जाना बेहद जरूरी है।

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