अमेरिका और रूस के बीच फंसे भारत के सामने बढ़ रही है तटस्थ बने रहने की चुनौती

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अमेरिका और रूस कूटनीति की पिच पर जोर अजमाइश कर रहे हैं। रूस इस समय सबसे अधिक अंतरराष्ट्रीय और आर्थिक प्रतिबंधों का सामना कर रहा है।

बदले में रूस-यूक्रेन के बीच में टकराव अमेरिका की नाक का सवाल बना हुआ है। यूरोप में अमेरिका के दबदबे का भी मामला है। माना जा रहा है कि इसी सिलसिले में एशिया के चीन के बाद सबसे शक्तिशाली देश भारत की अमेरिकी पैरोकार जमकर तारीफ कर रहे हैं। जी-7 के शिखर नेताओं की बैठक में राष्ट्रपति बाइडन ने भी कुछ ऐसा किया कि प्रधानमंत्री मोदी अंतरराष्ट्रीय जगत में चर्चा में आ गए।

प्रधानमंत्री आस्ट्रेलिया गए, तो वहां के राष्ट्राध्यक्ष ने पलक पावड़े बिछा दिए। प्रधानमंत्री मोदी को न केवल बॉस कहा बल्कि उनकी तुलना रॉकस्टार तक से कर डाली। आस्ट्रेलिया क्वैड का सदस्य देश है। प्रधानमंत्री की इतनी तारीफ कूटनीति के जानकारों के बीच में भी चर्चा का विषय बनी हुई है। इस बारे में विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी ने केवल इतना कहा कि अच्छी बात है। हम कुछ अच्छा होते हुए देख रहे हैं। लेकिन इसके बाद रूस और भारत के संबंधों पर बात की गई, तो वह अधिक जवाब नहीं दे सके। एक लाइन का बस सधा सा जवाब था कि भारत और रूस के रिश्ते अच्छे हैं।

भारत और रूस के बीच क्या हैं उलझनें?

विदेश मामलों के जानकार और पूर्व वायुसेना अधिकारी एयरवाइस मार्शल एनबी सिंह कहते हैं कि भारत और रूस के बीच बहुत कुछ ठीक नहीं चल रहा है। रूस अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों का सामना कर रहा है। भारत के साथ कारोबार थोड़ा तनाव के दौर से गुजर रहा है। एनबी सिंह आशंका जाहिर कर रहे हैं कि यही स्थिति बनी रही तो भारत को रूस से सस्ती दर पर ईधन तेल मिलना बंद हो सकता है। दूसरा बड़ा असर रक्षा क्षेत्र में हथियारों के सौदे और आपूर्ति पर पड़ सकता है। वरिष्ठ पत्रकार और विदेश मामलों के जानकार रंजीत कुमार का भी कहना है कि भारत और रूस के संबंधों की अग्निपरीक्षा चल रही है। एस-400 मिसाइल प्रतिरक्षी प्रणाली की आपूर्ति में भी रूस की तरफ से देरी हो रही है।

दरअसल, रूस इन दिनों भारत पर काफी दबाव बना रहा है। ब्लूमबर्ग रिपोर्ट भी कुछ इसी तरफ इशारा कर रही है। रूस भारत से फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) में मदद चाहता है। रूस का दारोमदार भारत, चीन और ताइवान पर है। चीन रूस का साथ दे रहा है। रूस चाहता है कि भारत उसकी सहायता करे। एफएटीएफ में भारत की मौजूदगी अहमियत रखती है। वहां भारत का स्पष्ट रुख रूस को एफएटीएफ के निगरानी के दायरे से बाहर रख सकता है। इसके समानांतर भारत की तटस्थ रहने की नीति को लेकर रूस के रणनीतिकार आशंकित भी हैं।

अमेरिका के दबाव के आगे यूरोप के देश स्वतंत्र नीति के पक्ष में

यूक्रेन पर रूस की सैन्य कार्रवाई ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तमाम समीकरण बदले हैं। जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन समेत अन्य के सामने स्वतंत्र नीति बनाए रखने की चुनौती है। ब्रिटेन अमेरिका के साथ है, लेकिन जर्मनी और फ्रांस की चुनौती बढ़ रही है। दूसरी तरफ चीन ने अपनी यूरोप नीति को लेकर काफी दबाव बना रखा है। माना जा रहा है कि अमेरिका अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चल रही राजनीतिक पृष्ठभूमि को देखकर भारत के साथ रिश्ते को नया आयाम दे रहा है। कूटनीति के जानकारों का कहना है कि अमेरिका भारत और रूस के रिश्ते की मजबूरी को समझता है, लेकिन उसकी कोशिश अब इसे निर्णायक मोड़ पर ले जाने की भी है। इसलिए ऐसा नहीं है कि भारत पर रूस के अधिकारियों का ही दबाव है। अमेरिकी अधिकारी भी अपनी कूटनीतिक शैली में लगातार दबाव बना रहे हैं।

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