Anantnag Encounter: कहीं मुखबिर ने धोखा या गुमराह तो नहीं किया? अनंतनाग मुठभेड़ पर उठ रहे हैं कई सवाल

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अनंतनाग के गडोल में मुठभेड़ में कर्नल, मेजर और डीएसपी समेत चार सुरक्षाकर्मी वीरगति को प्राप्त हो चुके हैं।

कश्मीर में 34 वर्ष से जारी आतंकी हिंसा में यह पहला अवसर नहीं है, जब आतंकियों से लड़ते हुए सुरक्षाबलों को इस तरह का भारी नुकसान उठाना पड़ा हो। लेकिन, इस मुठभेड़ पर सवाल उठ रहे हैं।

कमजोर रणनीति पर भी सवाल
कुछ रक्षा विशेषज्ञ मुखबिर द्वारा धोखा या गुमराह करने का हवाला दे रहे हैं तो कई कमजोर रणनीति पर सवाल उठा रहा है। सुरक्षा अधिकारी इन सवालों से बच रहे हैं। कश्मीर रेंज के अतिरिक्त महानिदेशक विजय कुमार ने गत शुक्रवार को यह जरूर कहा कि आतंकियों द्वार घात लगाए जाने की बात सिर्फ कल्पना है, सच्चाई नहीं है।

गडोल में जहां मुठभेड़ हो रही है, वह सीधी पहाड़ी की ढलान पर घने पेड़ों, झाड़ियों और चट्टानों वाला इलाका है। वहां कई प्राकृतिक गुफाएं हैं। सूत्रों के मुताबिक, गत मंगलवार शाम को अभियान की शुरुआत हुई थी। जिस समय घेराबंदी की शुरुआत हुई, उस समय सूरज पूरी तरह नहीं डूबा था।

इसलिए आतंकियों को अभियान की भनक लग गई थी। घेराबंदी शुरू करने के साथ ही आतंकियों के ठिकाने की तरफ बढ़ना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं किया बल्कि सूरज डूबने का पूरा इंतजार किया गया। इससे आतंकियों को अपनी स्थिति मजबूत बनाने, सुरक्षित आड़ लेने का पूरा मौका मिला होगा।

सुरक्षाबलों का छोटा दस्ता इलाके में भेजना चाहिए था। गडोल में सादे कपड़ों में सुरक्षाकर्मियों का दस्ता तैनात करना चाहिए था। उसे आतंकी ठिकाने की तरफ रवाना करना चाहिए था। इसके अलावा जिस मुखबिर ने खबर दी है, वह आतंकियों के साथ भी लगातार संपर्क में होगा, इससे इनकार नहीं किया जा सकता।

कोई भी मुखबिर आतंकियों को बताकर सुरक्षाबलों को उनके ठिकाने की तरफ लेकर आसानी से नहीं जाता। आतंकी उसे मार सकते हैं। इसलिए मौजूदा मुठभेड़ में अगर मुखबिर साथ था तो वह कहां है। इसके अलावा कई सूत्र दावा करते हैं कि सुरक्षाबलों ने आतंकियों के कुछ ओवरग्राउंड वर्कर पकड़ रखे थे, उन्होंने ही आतंकी ठिकाने की जानकारी दी थी।

ऐसे में उक्त ओवरग्राउंड वर्करों द्वारा डबल क्रास किए जाने की संभावना खत्म हो जाती है। गडोल मुठभेड़ इस पूरे अभियान की कमजोर रणनीति और एसओपी के उल्लंघन की तरफ इशारा करती है। बलिदानी अधिकारियों ने क्या बुलेट प्रूफ जैकेट और पटके पहन रखे थे, इसका कोई जवाब नहीं दे रहा है।

जब यह पता चला कि आतंकी ठिकाना पहाड़ पर है तो फिर नीचे की तरफ से क्यों सुरक्षाबलों ने ऊपर चढ़ना शुरू किया जबकि ऐसी स्थिति में तय प्रक्रिया है कि पहाड़ के पीछे की तरफ से पहाड़ के ऊपर से सुरक्षाबल आतंकी ठिकाने की तरफ आते हैं। इस अभियान में सुरक्षाबल नीचे की तरफ से ऊपर चढ़ रहे थे जिससे आतंकी उनकी हर गतिविधि की निगरानी कर रहे थे।

आतंकियों की क्षमता का सही आकलन नहीं किया होगा
जम्मू-कश्मीर पुलिस के सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी ने अपना नाम न छापे जाने की शर्त पर कहा कि इस पूरे अभियान को लेकर जो सवाल उठ रहे हैं, उनके जवाब जांच के बाद ही मिलेंगे। मुझे लगता है कि मौके पर जो अधिकारी रहे होंगे उन्होंने आतंकियों की क्षमता का सही आकलन नहीं किया होगा।

घेराबंदी के फौरन बाद अभियान चलाया जाना चाहिए उसे स्थगित नहीं रखना चाहिए। इवैक्युएशन प्लान भी बना होगा,अगर बना था तो उसे क्यों लागू नहीं किया गया। क्या वरिष्ठ अधिकारियों को इसके बारे में नहीं पता था।

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