रतन टाटा: सादा जीवन जीते थे रतन टाटा, सौ से ज्यादा देशों में चलाते थे कंपनियां; कई विवादों में आया नाम
रतन नवल टाटा दुनिया के सबसे प्रभावशाली उद्योगपतियों में से एक थे, फिर भी वह कभी अरबपतियों की किसी सूची में नहीं आए।
उन्होंने 30 से अधिक कंपनियों को नियंत्रित किया जो छह महाद्वीपों के सौ से अधिक देशों में संचालित थीं, फिर भी उन्होंने एक साधारण जीवन जिया। वह ऐसे कॉरपोरेट दिग्गज थे जिन्हें शालीनता और ईमानदारी के गुणों वाला ‘पंथनिरपेक्ष संत’ माना जाता था।
1962 में आर्किटेक्चर में डिग्री हासिल की
न्यूयार्क स्थित कार्नेल विश्वविद्यालय से 1962 में आर्किटेक्चर में बीएस की डिग्री हासिल करने के बाद रतन टाटा परिवार की कंपनी में शामिल हुए थे। शुरुआत में टाटा ग्रुप के कारोबारों का अनुभव प्राप्त करने के लिए उन्होंने शाप फ्लोर पर काम किया फिर 1971 में उनमें से एक नेशनल रेडियो एंड इलेक्ट्रानिक्स कंपनी में प्रभारी निदेशक नामित हुए।
एक दशक बाद 1991 में उन्होंने अपने चाचा जेआरडी के स्थान पर टाटा इंडस्ट्रीज के चेयरमैन का पद संभाला जो आधी सदी से भी अधिक समय तक प्रभारी रहे थे। यह वह वर्ष था जब भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था खाली था और टाटा ने जल्द ही समूह को नमक से लेकर स्टील, कारों से लेकर सॉफ्टवेयर, बिजली संयंत्रों व एयरलाइंस तक के संचालन के साथ एक ग्लोबल पावर हाउस में बदल दिया।
दो दशकों तक टाटा संस के चेयरमैन रहे
वह दो दशकों से अधिक समय तक समूह की मुख्य होल्डिंग कंपनी टाटा संस के चेयरमैन रहे। इस दौरान समूह ने काफी विस्तार किया। वर्ष 2000 में लंदन स्थित टेटली टी को 43.13 करोड़ अमेरिकी डालर में अधिग्रहीत किया, 2004 में दक्षिण कोरिया के देवू मोटर्स के ट्रक-निर्माण संचालन को 10.2 करोड़ डालर में खरीदा, एंग्लो-डच स्टील निर्माता कोरस समूह को खरीदने के लिए 11.3 अरब डॉलर का भुगतान किया और फोर्ड मोटर कंपनी से ब्रिटिश कार ब्रांड जगुआर और लैंड रोवर खरीदने के लिए 2.3 अरब डालर खर्च किए।
भारत के सबसे सफल व्यापारिक दिग्गजों में से एक होने के साथ-साथ वह अपनी परोपकारी गतिविधियों के लिए भी जाने जाते थे। पिछली सदी के आठवें दशक में उन्होंने आगा खान अस्पताल और मेडिकल कालेज परियोजना शुरू की थी। 1991 में टाटा संस के चेयरमैन रूप में नियुक्ति के बाद उन्होंने अपने परदादा जमशेदजी द्वारा स्थापित टाटा ट्रस्ट को आगे बढ़ाया और टाटा इंस्टीट्यूट आफ सोशल साइंसेज जैसे उत्कृष्ट संस्थान स्थापित किए।
रतन टाटा भी विवादों से अछूते नहीं रहे
रतन टाटा भी विवादों से अछूते नहीं रहे। समूह को दूसरी पीढ़ी के दूरसंचार लाइसेंसों के आवंटन में 2008 के घोटाले में सीधे तौर पर नामित नहीं किया गया, लेकिन लाबिस्ट नीरा राडिया को किए गए कथित फोन कॉल की लीक हुई रिकॉर्डिंग के जरिये उनका नाम सामने आया था। उन पर किसी गलत काम का आरोप नहीं था।
दिसंबर, 2012 में उन्होंने टाटा संस का नियंत्रण साइरस मिस्त्री को सौंप दिया था जो उस समय उनके डिप्टी थे। लेकिन मालिकों को पहले गैर-टाटा परिवार के सदस्य के कामकाज से परेशानी थी, लिहाजा अक्टूबर, 2016 में मिस्त्री को हटा दिया गया। बताते हैं रतन टाटा उन शेयरहोल्डर्स में शामिल थे जो कई परियोजनाओं पर मिस्त्री से असहमत थे। इनमें मिस्त्री का घाटे में चल रही नैनो कार परियोजना को बंद करने का फैसला शामिल था।
पेटीएम, स्नैपडील, लेंसकार्ट में किया निवेश
मिस्त्री के निष्कासन के बाद रतन टाटा ने अक्टूबर, 2016 से अंतरिम अध्यक्ष के रूप में कुछ समय के लिए काम किया और जनवरी, 2017 में नटराजन चंद्रशेखरन को टाटा समूह का अध्यक्ष नियुक्त किए जाने पर फिर सेवानिवृत्ति हो गए थे। इसके बाद उन्होंने युवा उद्यमियों की मदद की, नए युग की तकनीक से प्रेरित स्टार्ट-अप में निवेश किया। अपनी व्यक्तिगत क्षमता और कुछ अपनी निवेश कंपनी आरएनटी कैपिटल एडवाइजर्स के जरिये उन्होंने ओला इलेक्टि्रक, पेटीएम, स्नैपडील, लेंसकार्ट और जिवामे सहित 30 से अधिक स्टार्ट-अप में निवेश किया था।