‘भावनाओं के आधार पर नहीं चल सकते, कानून के अनुसार करना होगा काम’, मणिपुर हिंसा मामले में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
मणिपुर हिंसा के दौरान विस्थापितों की संपत्तियों की सुरक्षा पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के कथित गैर-अनुपालन के लिए अवमानना कार्रवाई की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करने से शीर्ष अदालत ने शुक्रवार को इनकार कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह भावनाओं के आधार पर नहीं चल सकता, बल्कि उसे कानून के अनुसार काम करना होगा। जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी और जस्टिस पंकज मित्तल की अवकाशकालीन पीठ ने कहा कि वह दलील से संतुष्ट नहीं है कि मणिपुर के मुख्य सचिव समेत प्रतिवादियों के विरुद्ध अवमानना का मामला बनता है और याचिकाकर्ता कानून के तहत उपलब्ध उपायों का सहारा ले सकते हैं। मणिपुर की ओर से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एश्वर्य भाटी ने पीठ को बताया कि अवमानना का कोई मामला नहीं बनता और राज्य व केंद्र सरकार लोगों की चिंताओं को दूर करने के लिए धरातल पर हर काम कर रही हैं।
उन्होंने कहा कि मुद्दे को गर्म रखने का प्रयास करना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। सभी नागरिकों एवं उनकी संपत्तियों की रक्षा करना राज्य का दायित्व है और सरकार इस मुद्दे पर अपडेट स्थिति रिपोर्ट दाखिल कर सकती है। शीर्ष अदालत उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें दावा किया गया था कि जातीय हिंसा के दौरान विस्थापित हुए लोगों की संपत्तियों की रक्षा के उसके पिछले वर्ष 25 सितंबर के आदेश की प्रतिवादियों ने अवमानना की है।
पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील से सवाल किया कि किसने अवमानना की है, इस पर वकील ने जवाब दिया कि मुख्य सचिव एवं अन्य। पीठ ने कहा कि उन्होंने अतिक्रमण नहीं किया है। जब वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता मणिपुर के बाहर रह रहे हैं और इंफाल के नजदीक कहीं भी जाने की स्थिति में नहीं हैं, तब पीठ ने कहा, “इसका मतलब यह नहीं कि मुख्य सचिव के विरुद्ध नोटिस जारी किया जाए।” इस दौरान भाटी ने कहा, “मणिपुर में अभी भी असहज करने वाली शांति है। लोगों में मतभेद हैं और राज्य व केंद्र सरकार सभी को समझाने की कोशिश कर रही हैं।”
जब याचिकाकर्ता के वकील ने दावा किया कि उनकी संपत्तियों को पुलिस की उपस्थिति में लूट लिया गया और वे उन वीडियो को अदालत के समक्ष रख सकते हैं, तब भाटी ने इस पर आपत्ति व्यक्त की और कहा कि मिथ्या आरोप लगाए जा रहे हैं। पीठ ने कहा, “संपत्तियों की रक्षा करना उनका (अधिकारियों का) दायित्व है। इस अदालत के आदेश का पालन करना उनका कर्तव्य है। इस बारे में कोई संदेह नहीं है।”
साथ ही कहा कि मुख्य सचिव और अन्य प्रतिवादियों के विरुद्ध अवमानना का कोई मामला नहीं बनता, अधिकारियों पर इस तरह दबाव मत डालिए। याचिकाकर्ता कानून के मुताबिक, उचित प्रक्रिया का सहारा ले सकते हैं। पीठ ने कहा, “आपके साथ पूरी सहानुभूति है। आपकी संपत्तियों की रक्षा करने की जरूरत है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि हमें प्रतिवादियों को अवमानना नोटिस जारी करना होगा।” उल्लेखनीय है कि मणिपुर में पिछले वर्ष तीन मई को भड़की जातीय हिंसा में 170 से ज्यादा लोग मारे गए हैं और कई सौ अन्य लोग घायल हुए हैं।