आज सीएम नीतीश पहुंचेंगे राजगीर, राजकीय पुरुषोत्तम मास मेला का करेंगे उद्घाटन; शाम में भव्य महाआरती का आयोजन

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आज बुधवार को सीएम नीतीश कुमार पौराणिक सरस्वती नदी कुंड घाट पर आयोजित महाआरती समारोह के माध्यम से राजकीय पुरुषोत्तम मास मेले का विधिवत उद्घाटन करेंगे।

सरस्वती नदी कुंड घाट पर बनारस घाट के तर्ज पर प्लेटफार्म बनाया गया है। जिला शासन और श्री राजगृह कुंड तीर्थ पुरोहित रक्षार्थ पंडा कमेटी ने इसकी तैयारियां पूरी कर ली है। पंडा कमेटी के सचिव विकास उपाध्याय ने बताया कि बुधवार की संध्या महाआरती का भव्य आयोजन किया गया है, जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में सीएम नीतीश कुमार शामिल होंगे।

वहीं, सिमरिया काली घाट के संत शिरोमणि करपात्री अग्निहोत्री चिदात्मन महाराज उर्फ बाबा फलाहारी सहित बनारस के पुजारी और विभिन्न स्थानों से पहुंचे सभी साधु संत इसमें शिरकत करेंगे। उन्होंने बताया कि सरस्वती नदी कुंड घाट के पूर्वी हिस्से में भगवान शिव की एक प्रतिमा स्थापित की गई है।

पुरुषोत्तम मास मेला में राजगीर के पौराणिक सरस्वती नदी कुंड सह घाट की पौराणिक महत्व की गाथा वेद पुराणों में है। जिसमें इस नदी की महिमा का बखान है। पुरुषोत्तम मास मेले में यह पाताल गंगा समान बन जाती है। वहीं, बौद्ध साहित्य में इसे सप्पणी कहा गया है।

वायुपुराण और स्कन्दपुराण में सरस्वती नदी की महिमा का वर्णन
अखिल भारतीय तीर्थ पुरोहित महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ धीरेन्द्र उपाध्याय बताते हैं कि पुरुषोत्तम मास मेले में पौराणिक सरस्वती नदी कुंड के शीतल जल में डूबकी लगाकर श्रद्धालु तृप्त हो जाते हैं। वायुपुराण और स्कन्दपुराण में सरस्वती नदी की महिमा का वर्णन उल्लेखनीय है।

राजगीर में था जलस्रोतों का अभाव
ऐसा कहा जाता है कि जब मलमास अपनी पीड़ा जाहिर करने बैकुंठ धाम में श्री हरि नारायण के समक्ष पहुंचे तो श्री हरिनारायण ने मलमास को पुरुषोत्तम मास की संज्ञा दी थी। मलमास को पुरुषोत्तम में शुद्ध करने के तहत जिस अनुष्ठान की जरुरत थी, उसके लिए राजगीर में जलस्रोतों का अभाव था।

ब्रह्म के आशीर्वाद से उत्पन्न हुईं शीतल और गर्म जलधाराएं
अनुष्ठान में पहुंचे ॠषि महर्षियों ने स्नान करने के लिए पवित्र जलधारा की इच्छा जाहिर की। ब्रह्म के आशीर्वाद से राजगीर तीर्थ क्षेत्र में शीतल और गर्म जलधाराएं फूट पड़ी। बौद्ध साहित्य में सरस्वती नदी का नाम सप्पणी नदी हुआ करता था। भगवान बुद्ध सरस्वती नदी के किनारे कुछ परिव्राजकों यानी भिक्षाटन कर जीवन निर्वाह करने वाले व्रतधारी संन्यासी से भेंट किये थे। इसी नदी का जल ग्रहण कर आगे बढ़े थे।

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